गणेश भजन
संजीव 'सलिल'
एकदन्त गजवदन विनायक, वन्दन बारम्बार.
तिमिर हरो प्रभु!, दो उजास शुभ, विनय करो स्वीकार..
*
प्रभु गणेश की करो आरती, भक्ति सहित गुण गाओ रे!
रिद्धि-सिद्धि का पूजनकर, निज जीवन सफल बनाओ रे!...
*
प्रभु गणपति हैं विघ्न-विनाशक,
बुद्धिप्रदाता शुभ फल दायक.
कंकर को शंकर कर देते-
वर देते जो जिसके लायक.
भक्ति-शक्ति वर, मुक्ति-युक्ति-पथ-पर पग धर तर जाओ रे!...
प्रभु गणेश की करो आरती, भक्ति सहित गुण गाओ रे!...
*
अशुभ-अमंगल तिमिर प्रहारक,
अजर, अमर, अक्षर-उद्धारक.
अचल, अटल, यश अमल-विमल दो-
हे कण-कण के सर्जक-तारक.
भक्ति-भाव से प्रभु-दर्शन कर, जीवन सफल बनाओ रे!
प्रभु गणेश की करो आरती, भक्ति सहित गुण गाओ रे!...
*
संयम-शांति-धैर्य के सागर,
गणनायक शुभ-सद्गुण आगर.
दिव्य-दृष्टि, मुद मग्न, गजवदन-
पूज रहे सुर, नर, मुनि, नागर.
सलिल-साधना सफल-सुफल दे, प्रभु से यही मनाओ रे.
प्रभु गणेश की करो आरती, भक्ति सहित गुण गाओ रे!...
******************
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें