सोमवार, 28 दिसंबर 2009

गीत; अम्ब! विमल मति दे -संजीव 'सलिल'

गीत


संजीव 'सलिल'

अम्ब! विमल मति दे

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हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!

अम्ब विमल मति दे.....

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नन्दन कानन हो यह धरती।

पाप-ताप जीवन का हरती।

हरियाली विकसे.....

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बहे नीर अमृत सा पावन।

मलयज शीतल शुद्ध सुहावन।

अरुण निरख विहसे.....

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कंकर से शंकर गढ़ पायें।

हिमगिरि के ऊपर चढ़ जाएँ।

वह बल-विक्रम दे.....

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हरा-भरा हो सावन-फागुन।

रम्य ललित त्रैलोक्य लुभावन।

सुख-समृद्धि सरसे.....

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नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें।

स्नेह समन्वय मन्त्र उचारें।

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