सोमवार, 28 दिसंबर 2009

गीत; अम्ब! विमल मति दे -संजीव 'सलिल'

गीत


संजीव 'सलिल'

अम्ब! विमल मति दे

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हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!

अम्ब विमल मति दे.....

*

नन्दन कानन हो यह धरती।

पाप-ताप जीवन का हरती।

हरियाली विकसे.....

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बहे नीर अमृत सा पावन।

मलयज शीतल शुद्ध सुहावन।

अरुण निरख विहसे.....

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कंकर से शंकर गढ़ पायें।

हिमगिरि के ऊपर चढ़ जाएँ।

वह बल-विक्रम दे.....

*

हरा-भरा हो सावन-फागुन।

रम्य ललित त्रैलोक्य लुभावन।

सुख-समृद्धि सरसे.....

*

नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें।

स्नेह समन्वय मन्त्र उचारें।

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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009

गणेश भजन: विनय करूँ प्रभु श्री गणेश जी! --संजीव 'सलिल'

विनय करूँ प्रभु श्री गणेश जी!


विघ्न करो सब दूर हमारे...

*

सत-शिव-सुन्दर हम रच पायें,

निज वाणी से नित सच गायें.

अशुभ-असत से लड़ें निरंतर-

सत-चित आनंद-मंगल गायें.

भारत माता ग्रामवासिनी-

हम वसुधा पर स्वर्ग बसायें.



राँगोली-अल्पना सुसज्जित-

हों घर-घर के अँगना-द्वारे.

मतभेदों को सुलझा लें,

मनभेद न कोई बचे जरा रे.

विनय करूँ प्रभु श्री गणेश जी!

विघ्न करो सब दूर हमारे...

*

भारत माता ग्रामवासिनी,

पनघट-पनघट पर राधा हो.

अमराई में कान्हा खेलें,

कहीं न कोई भव-बाधा हो.

ज्यों की त्यों चादर धर पाना-

लक्ष्य सभी ने मिल साधा हो.



हर अँगना में दही बिलोती

जसुदा, नन्द खड़े हों द्वारे.

कंस कुशासन को जनमत का

हलधर-कान्हा पटक सुधारे.

विनय करूँ प्रभु श्री गणेश जी!

विघ्न करो सब दूर हमारे...

*

तुलसी चौरा, राँगोली-अल्पना

भोर में उषा सजाये.

श्रम-सीकर में नहा दुपहरी,

शीश उठाकर हाथ मिलाये.

भजन-कीर्तन गाती संध्या,

इस धरती पर स्वर्ग बसाये.



निशा नशीली रंग-बिरंगे

स्वप्न दिखा, शत दीपक बारे.

ज्यों की त्यों चादर धरकर यह

'सलिल' तुम्हारे भजन उचारे.

विनय करूँ प्रभु श्री गणेश जी!

विघ्न करो सब दूर हमारे...

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श्री गणेश-स्तुति: हे! गजवदन विनायक वन्दन -संजीव 'सलिल'

श्री गणेश-स्तुति

संजीव 'सलिल'

हे! गजवदन विनायक वन्दन,

अर्पित अक्षत कुंकुम चन्दन.....

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विद्या-वारिधि, बुद्धि-विधाता-

कंटक कष्ट विपद भय त्राता.

मनुज-दनुज-सुर पूजें निश-दिन-

हे जनगण के भाग्य-विधाता.

पल में रचते मरू में मधुवन,

हे! गजवदन विनायक वन्दन.....

*
मोदक-प्रेमी, अक्षर-नायक,

क्षिप्र-सुलिपिविद, भाग्याविधायक.

विपुल-कलाविद, मंगलकर्ता-

वादक, नर्तक, लेखक, गायक.

हास लुटाते, हारकर कृन्दन.

हे! गजवदन विनायक वन्दन.....

*
पर्यावरण-प्रकृति के सर्जक,

सुख-समृद्धि, यश-शांति सुवर्धक.

प्रतिभा-मेधा के उन्नायक-

वर दो प्रभु हम हों यश-अर्जक.

तोड़ो प्रभु! आरक्षण-बंधन.

हे! गजवदन विनायक वन्दन.....

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भजन: एकदन्त गजवदन विनायक, वन्दन बारम्बार. -संजीव 'सलिल'

गणेश भजन




संजीव 'सलिल'



एकदन्त गजवदन विनायक, वन्दन बारम्बार.

तिमिर हरो प्रभु!, दो उजास शुभ, विनय करो स्वीकार..

*

प्रभु गणेश की करो आरती, भक्ति सहित गुण गाओ रे!

रिद्धि-सिद्धि का पूजनकर, निज जीवन सफल बनाओ रे!...

*

प्रभु गणपति हैं विघ्न-विनाशक,

बुद्धिप्रदाता शुभ फल दायक.

कंकर को शंकर कर देते-

वर देते जो जिसके लायक.

भक्ति-शक्ति वर, मुक्ति-युक्ति-पथ-पर पग धर तर जाओ रे!...

प्रभु गणेश की करो आरती, भक्ति सहित गुण गाओ रे!...

*

अशुभ-अमंगल तिमिर प्रहारक,

अजर, अमर, अक्षर-उद्धारक.

अचल, अटल, यश अमल-विमल दो-

हे कण-कण के सर्जक-तारक.

भक्ति-भाव से प्रभु-दर्शन कर, जीवन सफल बनाओ रे!

प्रभु गणेश की करो आरती, भक्ति सहित गुण गाओ रे!...

*

संयम-शांति-धैर्य के सागर,

गणनायक शुभ-सद्गुण आगर.

दिव्य-दृष्टि, मुद मग्न, गजवदन-

पूज रहे सुर, नर, मुनि, नागर.

सलिल-साधना सफल-सुफल दे, प्रभु से यही मनाओ रे.

प्रभु गणेश की करो आरती, भक्ति सहित गुण गाओ रे!...

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