शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

स्वातंत्र्य सत्याग्रही श्रीमती सुशीला देवी दीक्षित के प्रति काव्यांजलि:



भारत माँ रक्षा के हित, तुमने दी थी कुर्बानी.

नेह नर्मदा सदृश तुम्हारी, अमृतमय निर्मल वाणी..

स्निग्ध दृष्टि, ममतामय आनन्, तुम जग जननी लगती थीं.

मैया की संज्ञा तुम पर ही सत्य कहूँ मैं सजती थी..

दुर्बल काया सुदृढ़ मनोबल, 'आई' तुम थीं स्नेहागार.

बिना तुम्हारे स्मृतियों का सूना ही लगता संसार..

छाया प्रभा विनोद तुम्हारे सांस-सांस में बसते थे.

पाया था रेवा प्रसाद, तुम उनमें थीं वे तुममें थे..

पाँच पीढ़ियों से जुड़कर तुम सचमुच युग निर्माता थीं.

माया-मोह न व्यापा तुमको, तुम निज भाग्य विधाता थीं..

स्नेह 'सलिल' को मिला तुम्हारा, पूर्व जन्म के पुण्य फले.

चली गयीं तुम विकल खड़े हम, अपने खाली हाथ मले..

तुममें था इतिहास समाया, घटनाओं का हिस्सा तुम.

जो न समय देखा था हमने, सुना सकीं थीं किस्सा तुम..

तुम अभियान राष्ट्र सेवा का, तुम पाथेय-प्रेरणा थीं.

मूर्तिमंत तुम लोकभावना, तुम ही लोक चेतना थीं..

नत मस्तक शत वन्दन कर हम, अपना भाग्य सराह रहे.

पाया था आशीष तुम्हारा, यादों में अवगाह रहे..

काया नहीं तुम्हारी लेकिन छाया-माया शेष यहीं.

'सलिल' प्रेरणा तुम जीवन की, भूलेंगे हम तुम्हें नहीं.

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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

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